व्यर्थ आडम्बर का कोई लाभ नहीं
एक बार की बात है कि किसी सेठ ने मन्दिर बनवाने के लिए स्वामी दयानन्द की सम्मति माँगी। स्वामी दयानन्द ने गम्भीर तथा निडर होकर उत्तर दिया - सेठ जी, प्राणिमात्र का कल्याण करने वाले किसी अन्य परोपकारी कार्य में धन लगाओ। जड़ की पूजा के स्थान इस मन्दिर को बनाने से कोई लाभ नही। स्वामी जी महाराज के सत्यपरामर्श से उस सेठ ने मन्दिर बनवाने का विचार त्याग दिया।
जीवन की सफलता के लिए परमात्मा के दयालु, रक्षक, दानशीलता आदि गुणों को जीवन में धारण करना चाहिए। मन्दिर आदि बनवाकर मूर्ति स्थापित करके उस जड़ मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा करके, महंगे वस्त्र तथा कीमती गहने पहनाकर उसकी पूजा आरती आराधना आदि के व्यर्थ के आडम्बर का कोई लाभ नहीं। यह बात स्वामी दयानन्द ने तर्कपूर्वक सेठ को समझाई, जो सेठ की समझ में आने पर धन का अपव्यय बच गया तथा महर्षि दयानन्द की सत्प्रेरणा से उस सेठ ने किसी अन्य धार्मिक कार्य में उस धन का सदुपयोग किया।
Once a businessman asked Swami Dayanand for his opinion on building a temple. Swami Dayanand replied in a serious and fearless tone - businessman, invest your money in some other charitable work that benefits all living beings. There is no benefit in building a temple at a place where inanimate objects are worshipped. Due to the truthful advice of Swami ji Maharaj, that businessman abandoned the idea of building a temple.
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भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी छह ऋतुएं उपलब्ध हैं। परन्तु सातवीं एक और ऋतु है नारों की। हाँ! यहाँ नारों की भी एक ऋतु होती है, जिसमें कोई एक नारा चल निकलता है और ऋतु समाप्ति पर अपने आप समाप्त हो जाता है, कोई किसी से दुबारा उन नारों के लिए प्रश्न नहीं पूछता। गरीबी हटाओ भी इस देश का नारा था,...