आर्यसमाज
ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहां आर्य समाज ने अपना महत्वपूर्ण योगदान नहीं दिया? आजादी के आन्दोलन का श्रेय भी आर्य समाज को ही जाता है। इसका एक कारण क्रान्तिकारियों के अग्रदूत व पितामह पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा महर्षि दयानन्द के साक्षात शिष्य थे। श्री गोपाल कृष्ण गोखले के गुरू महादेव गोविन्द रानाडे, पूना भी महर्षि दयानन्द के साक्षात् शिष्य थे।
स्वतन्त्रता आन्दोलन की दोनों धारायें महर्षि दयानन्द से ही प्रष्फुटित होकर आगे बढ़ी हैं। सत्यार्थ प्रकाश, आर्याभिविनय, संस्कृत वाक्य प्रबोध में महर्षि दयानन्द ने जो देश प्रेम व स्वदेशीय राज्य की महत्ता पर लिखा है, वह आजादी के आन्दोलन का प्रमुख ध्येय, कारण व आधार बना। इतिहास में यह स्वीकार किया गया है कि आजादी के आन्दोलन में भाग लेने वाले 80 प्रतिशत लोग आर्यसमाज की विचारधारा व उससे प्रभावित थे। देश में विज्ञान, तकनीकी व उद्योगों का विकास कर लोगों को व्यवसाय प्राप्त कराने की ओर भी महर्षि का ध्यान था। इसके लिए भी उन्होंने वैचारिक एवं क्रियात्मक योगदान किया। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में उनकी अग्रणीय व प्रमुख भूमिका थी। उन्होंने गुजराती होकर व संस्कृत का सर्वोत्तम विद्वान होने पर भी राष्ट्रीय एकता व वेद धर्म प्रचार के लिए हिन्दी को अपनाया और उसके लिय राष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष व प्रयास किये। यदि इस देश को सरदार पटेल की भांति कुछ और योग्य नेता मिले होते तो आज देश में हिन्दी की जो दशा है, वह उससे कहीं अधिक अच्छी हो सकती थी। गोरक्षा के लिए भी महर्षि दयानन्द का योगदान चिरस्मरणीय रहेगा। उन्होंने अनेक उच्च अंग्रेज अधिकारियों से मिलकर गोरक्षा बन्द करने का प्रयास किया था। इसके लिए उन्होंने गो एवं कृषि रक्षिणी सभा एवं उसका विधान भी तैयार किया था। गो विश्वस्य मातरः, गो विश्वस्य नाभिः, गोरक्षा राष्ट्र रक्षा है, गोहत्या राष्ट्र हत्या के तुल्य है आदि जैसे विचार उनके लेखों व विचारों से ही देश व समाज को मिले। ब्रह्मचर्य एवं सदाचार की प्रतिष्ठा को भी उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। हम पहले वर्णन कर चुके हैं कि संसार के मत-मतान्तरों में असत्य व मिथ्या विश्वास भरे पड़े हैं, जिसका उन्होंने दिग्दर्शन कराकर उन्हें दूर करने का प्राणपन से प्रयास किया। पहले लोगों को रोटी का लालच देकर या डरा कर धर्मान्तरण कर विधर्मी बना दिया जाता था। महर्षि दयानन्द ने वैचारिक, सत्य धर्म व मान्यताओं के आधार पर उस अमानवीय कार्य को रोका ही नहीं अपितु गुणों के आधार पर विधमियों को शुद्ध कर सत्य धर्म का अनुयायी बनने का अवसर प्रदान किया जिसमें उन्हें सफलता भी मिली। विधवाओं के विवाह का उन्होंने वेदों से समर्थन किया और बाल विवाह के निषेध का भी सिद्धान्त देश को दिया। बाल विवाह के विरूद्ध जो कानून बना, वह भी उनके शिष्य श्री हरविलास शारदा जी के प्रयासों से बना था। सती प्रथा को भी उन्होंने वेद विरूद्ध, अनैतिक तथा अमानवीय बताया। मांसाहार व मदिरापान मनुष्य के लिए निषिद्ध कर्म हैं। इसको करने से मनुष्य पापगामी होकर जन्म जन्मान्तरों मे दुःख भोगता है। पुनर्जन्म को भी उन्होंने युक्ति व तर्क तथा शास्त्रीय प्रमाणों से प्रतिष्ठित किया। महर्षि दयानन्द एवं आर्यसमाज के ऐसे अनेकानेक कार्य गिनायें जा सकते हैं जिनका देश ही नहीं सारे संसार को लाभ हुआ है।
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व्यर्थ आडम्बर का कोई लाभ नहीं एक बार की बात है कि किसी सेठ ने मन्दिर बनवाने के लिए स्वामी दयानन्द की सम्मति माँगी। स्वामी दयानन्द ने गम्भीर तथा निडर होकर उत्तर दिया - सेठ जी, प्राणिमात्र का कल्याण करने वाले किसी अन्य परोपकारी कार्य में धन लगाओ। जड़ की पूजा के स्थान इस मन्दिर को बनाने से कोई लाभ नही। स्वामी जी महाराज के...
भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी छह ऋतुएं उपलब्ध हैं। परन्तु सातवीं एक और ऋतु है नारों की। हाँ! यहाँ नारों की भी एक ऋतु होती है, जिसमें कोई एक नारा चल निकलता है और ऋतु समाप्ति पर अपने आप समाप्त हो जाता है, कोई किसी से दुबारा उन नारों के लिए प्रश्न नहीं पूछता। गरीबी हटाओ भी इस देश का नारा था,...