कर्म की गति
कर्म की गति बड़ी गहन है, अतः कर्म, अकर्म, विकर्म के भेद को पहचानते हुए, बंधन में डालने वाले कर्मों की उचित पहचान निष्काम कर्म (जो कर्म तो हो परन्तु फलाकांक्षा से रहित) की विशिष्ट प्रविधि और तकनीक से योग का उपदेश किया गया है। फलाशा से किए गए कर्म राग-द्वेष के आकर्षक विकर्षण में फंसते हैं परन्तु उत्तम कर्मों को ईश्वरार्पण करते हुए कर्तव्य के रूप में कर्म का विधान गीता की अद्भुत तकनीक है। यही है कर्म का कौशल, कर्म की विलक्षण तकनीक जो राग-द्वेष, लाभ-हानि, जय-पराजय की चिंता से मुक्त समत्व योग कहलाती है।
पवित्र स्थान में बैठकर आसन को दृढ़ और स्थिर करते हुए, मन, चित्त, इन्द्रिय और मन की क्रियाओं को करके आत्मशोधन के लिए योग करो। जो लोग कर्मयोग का मार्ग अपनाते हैं, उन्हें कर्म फलाश का त्याग तथा कर्मों को ईश्वरार्पित करके ही कर्म विधान गीता की विलक्षण तकनीक है।
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व्यर्थ आडम्बर का कोई लाभ नहीं एक बार की बात है कि किसी सेठ ने मन्दिर बनवाने के लिए स्वामी दयानन्द की सम्मति माँगी। स्वामी दयानन्द ने गम्भीर तथा निडर होकर उत्तर दिया - सेठ जी, प्राणिमात्र का कल्याण करने वाले किसी अन्य परोपकारी कार्य में धन लगाओ। जड़ की पूजा के स्थान इस मन्दिर को बनाने से कोई लाभ नही। स्वामी जी महाराज के...
भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी छह ऋतुएं उपलब्ध हैं। परन्तु सातवीं एक और ऋतु है नारों की। हाँ! यहाँ नारों की भी एक ऋतु होती है, जिसमें कोई एक नारा चल निकलता है और ऋतु समाप्ति पर अपने आप समाप्त हो जाता है, कोई किसी से दुबारा उन नारों के लिए प्रश्न नहीं पूछता। गरीबी हटाओ भी इस देश का नारा था,...