भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी छह ऋतुएं उपलब्ध हैं। परन्तु सातवीं एक और ऋतु है नारों की। हाँ! यहाँ नारों की भी एक ऋतु होती है, जिसमें कोई एक नारा चल निकलता है और ऋतु समाप्ति पर अपने आप समाप्त हो जाता है, कोई किसी से दुबारा उन नारों के लिए प्रश्न नहीं पूछता।
गरीबी हटाओ भी इस देश का नारा था, जिससे यहाँ की जनता इतनी खुश हुई कि नारे की निर्मात्री को दो तिहाई बहुमत प्रदान कर दिया। जनता की गरीबी तो कभी नारों से न हटी है, न हटेगी, पर हाँ नारा देने वाले अवश्य अपनी गरीबी को हटा लेते हैं।
भारत के देशी राजाओं के साथ देश के स्वाधीन होने पर रियासतों के विलीनीकरण के समय जो एग्रीमेण्ट हुआ था, उसमें राजाओं को उनके राज्य के बदले जो प्रीवीपर्स निर्धारित किया गया, वह सालभर का 4 करोड़ रुपयों के करीब होता था। यह एक तरह का नैतिक बंधनरूप एक एग्रीमेण्ट था, जिसे तोड़कर रद्द करने का भी नारा लगा और उसे समाप्त किया गया। तब यह कारण दिया गया कि गरीब देश के लिए यह बोझ क्यों?
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व्यर्थ आडम्बर का कोई लाभ नहीं एक बार की बात है कि किसी सेठ ने मन्दिर बनवाने के लिए स्वामी दयानन्द की सम्मति माँगी। स्वामी दयानन्द ने गम्भीर तथा निडर होकर उत्तर दिया - सेठ जी, प्राणिमात्र का कल्याण करने वाले किसी अन्य परोपकारी कार्य में धन लगाओ। जड़ की पूजा के स्थान इस मन्दिर को बनाने से कोई लाभ नही। स्वामी जी महाराज के...
भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी छह ऋतुएं उपलब्ध हैं। परन्तु सातवीं एक और ऋतु है नारों की। हाँ! यहाँ नारों की भी एक ऋतु होती है, जिसमें कोई एक नारा चल निकलता है और ऋतु समाप्ति पर अपने आप समाप्त हो जाता है, कोई किसी से दुबारा उन नारों के लिए प्रश्न नहीं पूछता। गरीबी हटाओ भी इस देश का नारा था,...