रटा-रटाया उत्तर
इतिहास, घटनाओं और विचारों से भी नारी की क्षमताओं का परिचय मिलने के बावजूद भी उसे न जाने क्यों विकसित नहीं होने दिया जाता। प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव करता है कि नारी उसकी सहयोगी बनने के स्थान पर उसके लिए एक अनचाहा और उबाऊ बोझ ही सिद्ध होती है। पूछा जाना चाहिए कि सहयोगी को बोझ बना लेने के लिए जिम्मेदार कौन है ? प्रायः लोग रटा-रटाया उत्तर देते हैं कि यह हमेशा से चला आ रहा है। पहली बात तो यह है कि इस तरह के उत्तरों में अपनी कमजोरियों को ही ढोया जाता है; अन्यथा प्राचीनकाल से यह स्थिति परंपरा कदापि नहीं चली आ रही है ।
Despite the introduction of women's abilities from history, events and ideas, why are they not allowed to develop. Every person feels that instead of becoming his companion, woman proves to be an unwanted and boring burden for him. It should be asked who is responsible for making the colleague a burden? Often people give a rote answer that it has been going on since forever. First of all, such answers carry their own weaknesses; Otherwise, this condition has never been going on since ancient times.
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व्यर्थ आडम्बर का कोई लाभ नहीं एक बार की बात है कि किसी सेठ ने मन्दिर बनवाने के लिए स्वामी दयानन्द की सम्मति माँगी। स्वामी दयानन्द ने गम्भीर तथा निडर होकर उत्तर दिया - सेठ जी, प्राणिमात्र का कल्याण करने वाले किसी अन्य परोपकारी कार्य में धन लगाओ। जड़ की पूजा के स्थान इस मन्दिर को बनाने से कोई लाभ नही। स्वामी जी महाराज के...
भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी छह ऋतुएं उपलब्ध हैं। परन्तु सातवीं एक और ऋतु है नारों की। हाँ! यहाँ नारों की भी एक ऋतु होती है, जिसमें कोई एक नारा चल निकलता है और ऋतु समाप्ति पर अपने आप समाप्त हो जाता है, कोई किसी से दुबारा उन नारों के लिए प्रश्न नहीं पूछता। गरीबी हटाओ भी इस देश का नारा था,...