प्रकृति
प्रकृति क्षमा नहीं करती है। ईश्वरीय विधान का पर्याय है। यदि अनुशासन नहीं होता तो सृष्टि की गति अवरुद्ध हो जाती। प्रकृति अनुशासन से आबद्ध है। जो भी इस अनुशासन को तोड़ेंगे, उसे क्षमा नहीं मिल सकती है। दंड अवश्य मिलेगा। ठंढी रात में खुले बदन चलने पर प्रकृति क्षमा नहीं करेगी, ठंढ तो लगेगी ही ग्रीष्म की तपन में निकलने पर लू झुलसाएगी, वह माफ नहीं करेगी। ठीक उसी प्रकार यह सृष्टि-व्यवस्था ईश्वर के स्वाभाविक विधान से परिचालित है। जो भी इस विधान में व्यतिक्रम डालेगा, वह दंड पाएगा। उसे क्षमा नहीं मिल सकती।
Nature does not forgive. It is synonymous with divine law. If there was no discipline, the speed of creation would have been blocked. Nature is bound by discipline. Whoever breaks this discipline cannot be forgiven. There will definitely be punishment. Nature will not forgive you if you walk with bare body in the cold night, you will feel cold, if you go out in the heat of summer, you will get scorched, she will not forgive you. In the same way, this creation system is governed by the natural law of God. Whoever violates this law will be punished. He cannot be forgiven.
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व्यर्थ आडम्बर का कोई लाभ नहीं एक बार की बात है कि किसी सेठ ने मन्दिर बनवाने के लिए स्वामी दयानन्द की सम्मति माँगी। स्वामी दयानन्द ने गम्भीर तथा निडर होकर उत्तर दिया - सेठ जी, प्राणिमात्र का कल्याण करने वाले किसी अन्य परोपकारी कार्य में धन लगाओ। जड़ की पूजा के स्थान इस मन्दिर को बनाने से कोई लाभ नही। स्वामी जी महाराज के...
भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी छह ऋतुएं उपलब्ध हैं। परन्तु सातवीं एक और ऋतु है नारों की। हाँ! यहाँ नारों की भी एक ऋतु होती है, जिसमें कोई एक नारा चल निकलता है और ऋतु समाप्ति पर अपने आप समाप्त हो जाता है, कोई किसी से दुबारा उन नारों के लिए प्रश्न नहीं पूछता। गरीबी हटाओ भी इस देश का नारा था,...