असंतोष और नैराश्य
क्या खो गया आदमी से ? किस अभाव में ग्रस्त है - मनुष्य ? यह विचारणा होगा, स्वल्प साधनों में जब करोड़ों वर्षों से शांति और संतोषपूर्वक जिया जाता रहा है, तो इतने प्रचुर साधनों के रहते, इतना उद्वेग क्यों ? इतने असंतोष और नैराश्य का कारण क्या ? सचमुच किसी बड़े अभाव ने मनुष्य पर आक्रमण किया है ? सचमुच कोई बड़ी भूल हो गई है। वस्तुतः कुछ बड़ी चीज गुम हो गई है। यह है प्रेम-भावना का अभाव, जिसे सब कुछ होते हुए मनुष्य को कुछ भी नहीं जैसी स्थिति में ला पटका है। प्रेम जिसकी सत्ता, महत्ता और उपयोगिता का इन दिनों लगभग विस्मरण जैसा ही कर दिया गया है।
What's lost with the man? In what lack is suffering - man? It has to be considered, when one has lived peacefully and contentedly for crores of years in meager means, why so much excitement, having such abundant resources? What is the reason for so much dissatisfaction and despair? Has some great deprivation really attacked man? Really a big mistake has been made. In fact, something big is missing. This is the lack of love-feeling, which, being everything, has put man in a state of nothingness. Love whose power, importance and usefulness has been almost obliterated these days.
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व्यर्थ आडम्बर का कोई लाभ नहीं एक बार की बात है कि किसी सेठ ने मन्दिर बनवाने के लिए स्वामी दयानन्द की सम्मति माँगी। स्वामी दयानन्द ने गम्भीर तथा निडर होकर उत्तर दिया - सेठ जी, प्राणिमात्र का कल्याण करने वाले किसी अन्य परोपकारी कार्य में धन लगाओ। जड़ की पूजा के स्थान इस मन्दिर को बनाने से कोई लाभ नही। स्वामी जी महाराज के...
भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी छह ऋतुएं उपलब्ध हैं। परन्तु सातवीं एक और ऋतु है नारों की। हाँ! यहाँ नारों की भी एक ऋतु होती है, जिसमें कोई एक नारा चल निकलता है और ऋतु समाप्ति पर अपने आप समाप्त हो जाता है, कोई किसी से दुबारा उन नारों के लिए प्रश्न नहीं पूछता। गरीबी हटाओ भी इस देश का नारा था,...