संगत का असर
कौरवों को मामा शकुनि की बुरी संगत नहीं मिलती, तो सम्भवतः महाभारत जैसा युद्ध नहीं होता। बालक चन्द्रगुप्त मौर्य को आचार्य चाणक्य के सत्संग ने सम्राट की पदवी पर विराजमान कर दिया। अनेकों उदाहरण हैं, जिनसे सत्संग की सार्थकता और महत्व का पता चलता है। एक गाँव में गुरुजी और शिष्य भ्रमण के लिए निकले थे।
एक स्थान पर गुरूजी ने गुलाब का एक पौधा देखा, तो उन्होंने शिष्य से कहा - इस पौधे के नीचे से थोड़ी-सी मिट्टी को उठाकर सूंघो। शिष्य ने वैसा ही किया और कहा - गुरुवर, इस मिट्टी से तो गुलाब की मनमोहक सुगंध आ रही है। गुरुजी ने कहा - बेटा, जानते हो इस मिट्टी में यह मनमोहक सुगंध कहाँ से आई ? दरअसल इस मिटटी पर गुलाब के फूल टूट-टूटकर गिरते रहते हैं। इसी कारण मिट्टी से भी गुलाब की महक आने लगी है और यही संगत का असर है, जो व्यक्ति जैसी संगत में रहता है, उसमें वैसे ही गुण-दोष आ जाते हैं।
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व्यर्थ आडम्बर का कोई लाभ नहीं एक बार की बात है कि किसी सेठ ने मन्दिर बनवाने के लिए स्वामी दयानन्द की सम्मति माँगी। स्वामी दयानन्द ने गम्भीर तथा निडर होकर उत्तर दिया - सेठ जी, प्राणिमात्र का कल्याण करने वाले किसी अन्य परोपकारी कार्य में धन लगाओ। जड़ की पूजा के स्थान इस मन्दिर को बनाने से कोई लाभ नही। स्वामी जी महाराज के...
भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी छह ऋतुएं उपलब्ध हैं। परन्तु सातवीं एक और ऋतु है नारों की। हाँ! यहाँ नारों की भी एक ऋतु होती है, जिसमें कोई एक नारा चल निकलता है और ऋतु समाप्ति पर अपने आप समाप्त हो जाता है, कोई किसी से दुबारा उन नारों के लिए प्रश्न नहीं पूछता। गरीबी हटाओ भी इस देश का नारा था,...