स्वयं का अस्तित्व
किसी ने सही कहा है - नहीं प्रेम जिसमें वह क्या आदमी है, वह दुनिया में आकर करें दिन कटी है। इसके विपरीत जो आदमी प्रेम करता है, उसे दुनिया अपनी लगती है व सारी दुनिया भी उसे अपना ही समझती है। एक ऐसी जगह है प्रेम, जहाँ स्वयं को खोया तो जा सकता है, लेकिन खोजा नहीं जा सकता। इसकी प्रगाढ़ अनुभूति में खोया है स्वयं का अस्तित्व और मिलता है परमात्मा।
Someone has rightly said - No love in which what man he is, he should come in the world and the day is over. On the contrary, the man who loves, considers the world as his own and the whole world also considers him as his own. There is a place where love can be lost, but cannot be discovered. The existence of self is lost in its intense feeling and God is found.
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धर्म का ज्ञान धन तथा काम में अनासक्त मनुष्य ही धर्म को ठीक-ठीक जान सकता है। धर्म की सबसे बड़ी कसौटी वेद है। जो धर्म के रहस्य तथा सार को जानना चाहते हैं, उनके लिए वेद परम प्रमाण हैं। अर्थात धर्म का स्वरूप व रहस्य जानने के लिए वेद ही परम प्रमाण है। Only a person who is not attached to money can know...
गरीब देश की गरीबी कोई अदृश्य या काल्पनिक नहीं थी और ना हि किसी ने उसे किताबों से निकालकर नारों की शक्ल दी थी। राजाओं के लिए तो मान्यता थी कि वे देश की गरीबी की परवाह नहीं करते थे और खुद की शहनशाही शान-शौकत और अय्याशी जनता के खर्च पर करते रहते थे। उनका तो जन्म ही महलों में रेशम की गुदडियों में और...