सत्याग्रह
आदर्श और मूल्यों के लिय समर्पित विनोबा जी कहते थे कि आचरण, सम्यक वाणी और सम्यक विचार का परिपालन ही सत्याग्रह है। वे कहते थे कि परिपक्वता आने के साथ आत्मज्ञान और विज्ञान के तत्व-धर्म और राजनीति का स्थान लें लेंगे। उनका कहना था कि सत्यग्राही होने से ही व्यक्ति सत्याग्रही बनता है। निष्काम कर्मयोगियों में अग्रणी विनोबा जी अपने जीवन में ज्ञान और कर्म को साधने तथा उनके बीच सामंजस्य बैठाने की सतत कोशिश करते रहे।
Devoted to ideals and values, Vinoba ji used to say that following conduct, right speech and right thought is Satyagraha. He used to say that with maturity the elements of enlightenment and science would take the place of religion and politics. He said that only being a Satyagrahi makes a person a Satyagrahi. Vinoba ji, the foremost among the Nishkam Karmayogis, kept trying to cultivate knowledge and action in his life and to reconcile them.
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धर्म का ज्ञान धन तथा काम में अनासक्त मनुष्य ही धर्म को ठीक-ठीक जान सकता है। धर्म की सबसे बड़ी कसौटी वेद है। जो धर्म के रहस्य तथा सार को जानना चाहते हैं, उनके लिए वेद परम प्रमाण हैं। अर्थात धर्म का स्वरूप व रहस्य जानने के लिए वेद ही परम प्रमाण है। Only a person who is not attached to money can know...
गरीब देश की गरीबी कोई अदृश्य या काल्पनिक नहीं थी और ना हि किसी ने उसे किताबों से निकालकर नारों की शक्ल दी थी। राजाओं के लिए तो मान्यता थी कि वे देश की गरीबी की परवाह नहीं करते थे और खुद की शहनशाही शान-शौकत और अय्याशी जनता के खर्च पर करते रहते थे। उनका तो जन्म ही महलों में रेशम की गुदडियों में और...