मूड ऑफ
आजकल एक नया रोग चला है। उस रोग का नाम है - 'मूड ऑफ' होना। आजकल के सभ्य व शिक्षित समाज में यह रोग काफी फैला है। प्रायः हर किसी को यह कहते हुए सुना जा सकता है की ''आज तो फलाँ काम कर ही नहीं सके। 'मूड'' ही नहीं हुआ।'' ''क्या करें, आज तो ऑफिस जाने का मन ही नहीं हुआ।'' इस रोग की दवा किसी चिकित्सक के पास नहीं है। 'मूड ऑफ' होने के लक्ष्ण कुछ इस प्रकार होते हैं। शरीर के अंगों में हलकी पीड़ा, शिथिलता व आलस्य का प्रभाव रहता है। काम करने में अनुत्साह, सिर भारी चित्त, उदास तथा मन, चित उदास तथा मन बेचैन रहता है। यह शिकायत आज पचास फीसदी लोगों को होती है।
Nowadays a new disease has started. The name of that disease is 'mood off'. This disease has spread a lot in today's civilized and educated society. Almost everyone can be heard saying that "Today he could not do such work. There was no 'mood'. Some of the symptoms of being 'in the mood' are as follows. There is an effect of mild pain, laxity and laziness in the parts of the body. Dissatisfaction in doing work, head heavy, sad and depressed, mind is sad and the mind remains restless. Today this complaint happens to fifty percent of the people.
Nowadays a new disease has started. The name of that disease is 'mood off'. This disease has spread a lot in today's civilized and educated society. Almost everyone can be heard saying that "Today he could not do such work. There was no 'mood'. Some of the symptoms of being 'in the mood' are as follows. There is an effect of mild pain, laxity and laziness in the parts of the body. Dissatisfaction in doing work, head heavy, sad and depressed, mind is sad and the mind remains restless. Today this complaint happens to fifty percent of the people.
धर्म का ज्ञान धन तथा काम में अनासक्त मनुष्य ही धर्म को ठीक-ठीक जान सकता है। धर्म की सबसे बड़ी कसौटी वेद है। जो धर्म के रहस्य तथा सार को जानना चाहते हैं, उनके लिए वेद परम प्रमाण हैं। अर्थात धर्म का स्वरूप व रहस्य जानने के लिए वेद ही परम प्रमाण है। Only a person who is not attached to money can know...
गरीब देश की गरीबी कोई अदृश्य या काल्पनिक नहीं थी और ना हि किसी ने उसे किताबों से निकालकर नारों की शक्ल दी थी। राजाओं के लिए तो मान्यता थी कि वे देश की गरीबी की परवाह नहीं करते थे और खुद की शहनशाही शान-शौकत और अय्याशी जनता के खर्च पर करते रहते थे। उनका तो जन्म ही महलों में रेशम की गुदडियों में और...