पुरुष का अहंकार
आश्रम, धर्म, संस्कार, यज्ञ, कर्मकांड, दान, समाज-व्यवस्था आदि के प्राचीन रूप अब लुप्त होते जा रहे हैं और लोग इसी में प्रगति का गौरव मानते हैं। प्राचीन होने की बात यहाँ तो आड़े नहीं आती, फिर नारी के संबंध में ही उसकी दुहाई क्यों दी जाने लगती है ? विवेक की दृष्टि से विचारपूर्वक देखा जाए तो असलियत कुछ और ही सामने आती है और सिद्ध होता है कि इस अतिमहत्वपूर्ण विषय को प्रत्येक वर्ग किन्हीं-न-किन्हीं स्वार्थों के कारण उपेक्षित किए हुए हैं। उनमें सबसे बड़ा है - पुरुष का अहंकार। यह तो सभी मानते हैं कि विचारशीलता जहाँ भी उत्पन्न होगी और विकास के चरण जहाँ भी बढ़ेंगे, वहीँ उचित को मानने और अनुचित को न मानने की बात भी उत्पन्न होगी। नारी चूँकि पुरुष की हर अनुचित बात को मान लेती है और इससे पुरुष का अहं तुष्ट होता चलता है।
The ancient forms of ashram, religion, rites, yagya, rituals, charity, social-system etc. are now disappearing and people take pride in progress in this. The talk of being ancient does not come in the way here, then why is it being called in relation to women? If we look carefully from the point of view of conscience, then the reality comes to the fore and it is proved that this very important subject has been neglected by every class due to some or the other selfishness. The biggest among them is the ego of the man. It is believed by all that wherever thoughtfulness will arise and wherever the stages of development progress, there will also be a matter of accepting the right and not accepting the wrong. Since the woman accepts every unreasonable thing of the man and this keeps on satisfying the ego of the man.
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धर्म का ज्ञान धन तथा काम में अनासक्त मनुष्य ही धर्म को ठीक-ठीक जान सकता है। धर्म की सबसे बड़ी कसौटी वेद है। जो धर्म के रहस्य तथा सार को जानना चाहते हैं, उनके लिए वेद परम प्रमाण हैं। अर्थात धर्म का स्वरूप व रहस्य जानने के लिए वेद ही परम प्रमाण है। Only a person who is not attached to money can know...
गरीब देश की गरीबी कोई अदृश्य या काल्पनिक नहीं थी और ना हि किसी ने उसे किताबों से निकालकर नारों की शक्ल दी थी। राजाओं के लिए तो मान्यता थी कि वे देश की गरीबी की परवाह नहीं करते थे और खुद की शहनशाही शान-शौकत और अय्याशी जनता के खर्च पर करते रहते थे। उनका तो जन्म ही महलों में रेशम की गुदडियों में और...