गरीब देश की गरीबी कोई अदृश्य या काल्पनिक नहीं थी और ना हि किसी ने उसे किताबों से निकालकर नारों की शक्ल दी थी। राजाओं के लिए तो मान्यता थी कि वे देश की गरीबी की परवाह नहीं करते थे और खुद की शहनशाही शान-शौकत और अय्याशी जनता के खर्च पर करते रहते थे। उनका तो जन्म ही महलों में रेशम की गुदडियों में और चाँदी के चमचों के साथ जुड़ा होता था। परन्तु उन राजाओं की राजाशाही हटाकर हमने लोकशाही का रास्ता अपनाया। इसमें जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हमारे नए राजा होते हैं। वे जन प्रतिनिधि जनता के बीच से जनता की स्थिति में से ही चुने हुए लोग होते हैं। उनमें भी कई एक तो अत्यंत साधारण आर्थिक स्थिति वाले होते हैं। आजादी मिलने के पूर्व तक भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु अनेक वर्षों तक 1933 से 1946 तक काँग्रेस पार्टी से रु. 300/- प्रतिमाह वेतन लेते रहे थे। इनकों महात्मा गाँधी ने अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी कहा था। भारत जैसे गरीब देश के प्रधानमंत्री बनने वाले जिनका कि पहनावा खादी का था और खादी सादगी का प्रतीक थी। परन्तु इन्हीं नेहरु जी ने प्रधानमंत्री पद पर बैठते ही शहनशाही शानशौकत से रहना शुरु कर दिया। उन पर तीस हजार रुपए प्रतिदिन का खर्च सरकारी खजाने से होता रहा। यह था उनका गांधीवादी स्वरूप और गांधीजी के उत्तराधिकार का पद।
गरीब देश की आर्थिक दशा देखने का उनके पास समय ही नहीं था। देश के नेता बनने के साथ-साथ उन्हें दुनियाँ की लीडरी का भी चस्का लग गया था। इस महत्वाकांक्षा के चलते प्रतिमाह इस देश में विदेशी मेहमानों का तांता लगा रहता था, जिनकी खातिरदारी में करोड़ों रुपये का खर्च होता था।
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धर्म का ज्ञान धन तथा काम में अनासक्त मनुष्य ही धर्म को ठीक-ठीक जान सकता है। धर्म की सबसे बड़ी कसौटी वेद है। जो धर्म के रहस्य तथा सार को जानना चाहते हैं, उनके लिए वेद परम प्रमाण हैं। अर्थात धर्म का स्वरूप व रहस्य जानने के लिए वेद ही परम प्रमाण है। Only a person who is not attached to money can know...
गरीब देश की गरीबी कोई अदृश्य या काल्पनिक नहीं थी और ना हि किसी ने उसे किताबों से निकालकर नारों की शक्ल दी थी। राजाओं के लिए तो मान्यता थी कि वे देश की गरीबी की परवाह नहीं करते थे और खुद की शहनशाही शान-शौकत और अय्याशी जनता के खर्च पर करते रहते थे। उनका तो जन्म ही महलों में रेशम की गुदडियों में और...