असमंजस भरी वय
किशोरावस्था भी असमंजस भरी वय है। भूतकाल का कोई अनुभव होता नहीं। भविष्य में होने वाले परिणाम का सही निष्कर्ष निकाल सकने योग्य उनकी समझदारी होती नहीं। वर्तमान का उत्साह देखते हैं, साथ ही उसमें आत्मगौरव का भी आभास होता है। जोखिल ओढ़ने का, कुछ कर दिखाने और स्वेच्छा बरतने का मन होता है। नियंत्रण उन्हें अत्यचार जैसा प्रतीत होता है। उसमें उन्हें अपनी हेठी लगाती है। अनुशासन को वे ऐसा समझते हैं; जैसे किन्हीं अवांछनीय बंधनों से कसा जा रहा है। यही वह मनःस्थिति है, जिसमें दूरदर्शी परामर्श देने वाले स्वजन-संबंधी भी रोक-थाम करने पर शत्रुवत् प्रतीत होने लगते हैं।
Adolescence is also a confusing age. There is no past experience. They do not have the intelligence to be able to draw correct conclusions about future consequences. We see the enthusiasm of the present, as well as there is a sense of self-pride in it. There is a desire to take risks, to do something and to be willing. Control seems like tyranny to them. He puts his head in it. This is how they understand discipline; Like being tightened by some undesirable shackles. This is the state of mind in which even the relatives of the relatives who give far-sighted advice become hostile on stopping.
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धर्म का ज्ञान धन तथा काम में अनासक्त मनुष्य ही धर्म को ठीक-ठीक जान सकता है। धर्म की सबसे बड़ी कसौटी वेद है। जो धर्म के रहस्य तथा सार को जानना चाहते हैं, उनके लिए वेद परम प्रमाण हैं। अर्थात धर्म का स्वरूप व रहस्य जानने के लिए वेद ही परम प्रमाण है। Only a person who is not attached to money can know...
गरीब देश की गरीबी कोई अदृश्य या काल्पनिक नहीं थी और ना हि किसी ने उसे किताबों से निकालकर नारों की शक्ल दी थी। राजाओं के लिए तो मान्यता थी कि वे देश की गरीबी की परवाह नहीं करते थे और खुद की शहनशाही शान-शौकत और अय्याशी जनता के खर्च पर करते रहते थे। उनका तो जन्म ही महलों में रेशम की गुदडियों में और...